ऊतक क्या है ? What is Tissue ऊतक कितने प्रकार के होते है।
जन्तुओ में ऊतक (Animal Tissue ) का बड़ा महत्त्व है। ऊतक (Tissue) टिश्यू शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम बाइकाट ने किया, जबकि ऊतकों (Tissue) का अध्ययन मार्सेलो मैल्पीघी ने किया। ऊतक कोशिकाओं का ऐसा समूह होता है, जिनकी रचना, उत्पति और कार्य समान होते है। तो आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे की ऊतक क्या होता है (What is Tissue) ऊतक कितने प्रकार के होते है (Types Of Tissue) ऊतकों के क्या कार्य होते है (what is the function of tissues)
ऊतक क्या है ? (What is Tissue)
ऊतक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम बाइकाट ने किया, जबकि ऊतकों (Tissue) का अध्ययन मार्सेलो मैल्पीघी ने किया। जन्तु विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत ऊतकों का अध्ययन किया जाता है, ऊतक विज्ञान या औतिकी (Histology) कहलाती है। बहुकोशिकीय जन्तुओ की कोशिकाओं के बिच कार्य, विभाजन होता है अर्थात विशिष्टीकरण द्वारा भिन्न – भिन्न कोशिकाएँ विभिन्न कार्य करती है।
सरल भाषा में कहे तो “कोशिकाओं का ऐसा समूह जिनकी उत्पत्ती, रचना तथा कार्य समान हो, ऊतक (Tissue) कहलाता है”
ऊतक के प्रकार (Types Of Tissue)
कोशिकाओं की रचना, आकार, कार्य एवं अंतराकोशिकीय पदार्थ के आधार पर जन्तु ऊतक (Animal Tissue) चार प्रकार के होते है।
- उपकला ऊतक
- संयोजी ऊतक
- पेशीय ऊतक
- तंत्रिका ऊतक
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(1) उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)
उपकला ऊतक (Epithelial Tissue) शरीर पर त्वचा की बाहरी परत, अन्तरांगो के बाहरी तल, नालो के बाहर तथा भीतर स्थित होते है। इसकी उत्पति भ्रूण के तीनो प्राथमिक जनन स्तरों से होती है। उपकला ऊतक (epithelial tissue) की कोशिकाएँ एक-दूसरे से सटी हुई रहती है। तथा अन्तराल बन्धन द्वारा जुड़ी होती है। इनमे रुधिर वाहनिया अनुपस्थित होती है। इसका मुख्य कार्य निचे के ऊतकों (Tissue) को सुरक्षा प्रदान करना है। यह बाह्य तल को सूखने से बचाना है। यह चयनात्मक अवरोध की तरह कार्य करता है। यह आहारनाल में अवशोषण में सहायता करता है। यह स्त्रावण में सहायक है। यह वृक्क नलिकाओं में पुनरावशोषण तथा उत्सर्जन में सहायक है।
उपकला ऊतक निम्न प्रकार के होते है। (Types Of Epithelial Tissue)
- सरल उपकला ऊतक (Simple epithelial tissue)
- स्तरित उपकला ऊतक (Layered epithelial tissue)
- विशिष्ट उपकला ऊतक (Specific epithelial tissue)
सरल उपकला ऊतक (Simple epithelial tissue)
यह कोशिकाओं की एक मोटी परत होती है और प्रत्येक कोशिका आधार कला पर स्थित होती है। यह स्त्रावण तथा अवशोषण करने वाली सतहों पर पायी जाती है। कोशिकाओं की आकृति, रचना व कार्य के आधार पर इसे निम्नलिखित भागो में विभाजित किया गया है।
- सरल शल्की उपकला – इसकी कोशिकाएँ चपटी, बहुमुखी, शल्की अथवा चौड़ी प्लेट के आकार की होती है। इसको आच्छादन उपकला भी कहते है। यह फेफड़ो की वायु कुपिकाओ, हृदय, रुधिर वाहिनी, बोमेन सम्पुट का बाहरी व भीतरी स्तर, हेनले लूप की अवरोही भुजा, उदर गुहा का आवरण, आंख का लेन्स, आतंरिक कर्ण की कलागहण आदि में पायी जाती है।
- सरल घनाकार उपकला – इसकी कोशिकाएँ घनाकार होती है। यह ऊतक, उन अंगो में मिलती है जहाँ अवशोषण, उत्सर्जन तथा स्त्रवण की क्रियाएँ होती है। यह ऊतक (Tissue) वृक्क नलिकाओं, जनदो, बोंकिओल्स तथा श्वेद ग्रंथियों में पाया जाता है।
- सरल स्तम्भाकार उपकला – इसकी कोशिकाएँ स्तम्भ के समान लम्बी व एक-दूसरे से सटी होती है। यह ऊतक (Tissue) आमाशय, आंत, पित्ताशय वाहिनियों, श्वास नाल, ब्रोन्कस ब्रोन्काई, अंडवाहिनी, युरेटर, टिम्पेनिक गुहा आदि में पायी जाती है। सामान्य स्तम्भी रोमाभी उपकला की कोशिकाएँ रोमाभी होती है। यह छोटी श्व्सनियो, अण्डवाहिनियों, मूत्रवाहिनियों, मस्तिष्क एवं सुषुम्ना की तंत्रिका गुहा, गर्भाशयी नाल आदि की दीवार का भीतरी स्तर बनाता है।
स्तरित उपकला ऊतक (Layered epithelial tissue)
इस प्रकार की उपकला में कोशिकाएँ एक से अधिक स्तरों में व्यवस्थित होती है तथा कोशिकाओं का केवल सबसे भीतरी स्तर ही आधार कला पर स्थित रहता है। नमी और चिकनाहट की कमी तथा घर्षण आदि के कारण इसके सबसे बाहरी स्तर पर कोशिकाओं की निरंतर छीजन होती रहती है। आधार कला पर सधे स्तर की कोशिकाएँ निरंतर विभाजित होकर नये स्तर बनाती रहती है। यह स्तर उन सतहों पर पाया जाता है जहाँ किसी भी प्रकार का भौतिक, रासायनिक या तापीय दबाव रहता है। यह उपकला तीन प्रकार की होती है
- स्तरित शल्की उपकला – शरीर की अधिकांश संयुक्त उपकला इसी प्रकार की होती है। इसमें सबसे बाहर के स्तर की कोशिकाएँ चपटी व शल्की होती है तथा सबसे भीतर के स्तर की कोशिकाएँ स्तम्भी व घनाकार होती है। इन स्तरों के मध्य कोशिकाएँ बहुतलीय होती है। त्वचा की उपचर्म, ग्रसिका, मलाशय, योनि आदि की दीवार स्तरित शल्की उपकला की बनी होती है।
- स्तरित घनाकार उपकला – इसमें सबसे बाहर के स्तर की कोशिकाएँ घनाकार होती है। यह श्वेद ग्रंथियों व स्तन ग्रंथियों की बड़ी नलिकाओं में पाया जाता है।
- स्तरित स्तम्भी उपकला – इसमें सबसे बाहर के स्तर की कोशिकाएँ स्तम्भ होती है। यह स्वर कोष्ठ, पेरोटिड ग्रंथियों, स्तन ग्रंथियों की वाहिनियों में पायी जाती है।
विशिष्ट उपकला ऊतक (Specific epithelial tissue)
विशिष्ट उपकला ऊतक निम्न प्रकार का होता है।
- कूट स्तरित उपकला – इसकी कोशिकाएँ लम्बी तथा एक मोटी परत होती है, इसके आधार भाग में, उसी आधार कला पर सधी छोटी-छोटी आधार कोशिकाओं का एक अतिरिक्त स्तर होता है। जिसके कारण यह द्विस्तरित दिखाई देती है। ऐसी कोशिकाएँ घ्राणगुहा की श्लेष्मिक झिल्ली, श्वास नली, नासिका गुहाओं, नर जनन वाहिनियों, नर मूत्रमार्ग, ग्रंथियों की बड़ी वाहिनियों, ग्रसनी में पायी जाती है।
- अंतर्वर्ती उपकला – यह स्तरित उपकला के समान होती है। यह एक महीन आधार कला तथा मोटे एवं लचीले संयोजी ऊतक (Connective Tissue) पर सधी होती है। इसकी सभी कोशिकाएं जीवित, लचीली व पतली होती है। यह उपकला मूत्राशय और उत्सर्गी नलिकाओं में पायी जाती है।
- संवेदी उपकला – घ्राण अंगो की श्लेष्मिका कला अर्थात शनिडेरियन कला, अन्तः कर्णो की उपकला, स्वाद कलिकाओ तथा आँखों की रेटिना में संवेदी उपकला पायी जाती है।
- रंगा उपकला – आँखों की दृष्टि पटल आधार स्तर पर एक ऐसी उपकला होती है, जिसकी कोशिकाओं में रंगा-कण होते है।
- ग्रंथिल उपकला – यह स्तम्भी उपकला का एक रूपांतरण है। इसकी कोशिकाओं में एक स्पष्ट केन्द्रक होता है। इसकी कोशिकाओं से विशेष प्रकार का पदार्थ स्त्रावित होता है। विभिन्न अन्तः स्त्रावी ग्रंथियाँ, बहिःस्रावी ग्रंथियाँ तथा चषक कोशिकाएँ ग्रंथिल उपकला का उदाहरण है।
उपकला ऊतक (Epithelial Tissue) से बनने वाली ग्रन्थियाँ
शरीर की सभी ग्रंथियाँ एपिथीलियम ऊतक (Epithelial Tissue) से बनती है। ये दो प्रकार की होती है।
एककोशिकीय ग्रंथि – जब एक कोशिका स्त्रावण का कार्य करती है तो उसे एककोशिकीय ग्रंथि कहते है। इन ग्रंथियों में प्रायः श्लेष्मा बनता है जो स्त्रावित होकर सम्बंधित सतह को गीला रखता है। उदाहरण – श्वसन सतह तथा आहारनाल में उपस्थित चषक कोशिकाएं।
बहुकोशिकीय ग्रंथि – अनेको कोशिकाएं स्त्रावण करने के लिए समूह बना लेती है ऐसे समूह को बहुकोशिकीय ग्रंथि कहते है। ये दो प्रकार की होती है।
- अन्तः ग्रंथियाँ – इन ग्रंथियों का सतह से सम्बन्ध समाप्त हो जाता है तथा इनके स्त्रावण सीधे रुधिर में पहुंचते है। उदाहरण – पियूष, थायराइड आदि।
- बहिः ग्रंथियाँ – इनके स्त्रावण नलिकाओं द्वारा सतह पर स्त्रावित होते है ;उदाहरण – आमाशयी ग्रंथियाँ, आंत्रीय ग्रंथियाँ, लार ग्रंथियाँ आदि। बहिःस्रावी ग्रंथियों को चार पहलुओं में बाटा गया है।
- सामान्य एवं संयुक्त ग्रंथियाँ
- सामान्य ग्रंथि – सामान्य ग्रंथि में स्त्रावी कोशिकाएं एक या एक से अधिक समूह में व्यवस्थित होती है तथा इनसे उत्पन्न स्त्राव एक अशाखीय नलिका द्वारा बाहर निकलता है।
- संयुक्त ग्रंथि – संयुक्त ग्रंथि में स्त्रावी कोशिकाएं अनेक समूहों में व्यवस्थित होती है तथा इनका स्त्राव अनेक शाखान्वित नलिकाओं द्वारा बाहर निकलता है। जैसे – यकृत, अग्नाशय, लार ग्रन्थियाँ आदि।
- कुपिकीय, कोष्ठकीय एवं नालवत ग्रंथियाँ – कुपिकीय ग्रंथियों में फ्लास्क के आकार की, कोष्ठकीय ग्रंथियों में गोल तथा नालवत स्त्रावी इकाई होती है।
- ऐपोक्राइन, मिरोक्राइन तथा होलोक्राइन ग्रंथियाँ –स्तनधारियों की स्तन ग्रंथियों एपोक्राइन होती है। आंत्र व तेल ग्रंथिया होलोक्राइन होती है। स्वेद ग्रंथिया व लार ग्रंथिया मिरोक्राइन या एक्राइन होती है।
- सिरमी, श्लेष्मल एवं मिश्रित ग्रंथिया – श्वेद ग्रंथि तथा आंत्र ग्रंथि सिरमी होती है। चषक कोशिका तथा कार्डियक ग्रंथिया श्लेष्मल होती है। अग्नाशय एक मिश्रित ग्रंथि है।
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संयोजी ऊतक (Connective Tissue)
संयोजी ऊतक भ्रूणीय मिसोडर्म से बनता है। हर्टविग ने 1883 में मिसोडर्म से बनने वाले सभी ऊतकों को मिसेन्काइमा के नाम से सम्बोधित किया। संयोजी ऊतक शरीर का लगभग 30% भाग बनाता है। यह विभिन्न कोशिकाओं, ऊतकों व अंगो के बीच रहता है तथा इनको परस्पर बांधने या जोड़ने का कार्य करता है। संयोजी ऊतक मूल रूप से तीन घटको मैट्रिक्स, कोशिकाएं तथा तंतुओ का बना होता है।
संयोजी ऊतक के प्रकार (Types Of Connective Tissue)
मैट्रिक्स तथा तंतुओ की रचना के आधार पर संयोजी ऊतक को तीन भागो में विभाजित किया गया है।
- वास्तविक संयोजी ऊतक (true connective tissue)
- कंकालीय संयोजी ऊतक (skeletal connective tissue)
- द्रव ता तरल संयोजी ऊतक (fluid and fluid connective tissue)
वास्तविक संयोजी ऊतक (true connective tissue)
इसमें मैट्रिक्स तथा तंतु के अलावा निम्न कोशिकाएं पायी जाती है।
- फाइब्रोब्लास्ट – ये संख्या में अधिक व चपटी होती है। ये कोशिकाएँ कोलेजन तंतुओ का निर्माण करती है तथा घाव भरने के समय सर्वाधिक क्रियाशील होती है। स्कर्वी नामक रोग में इनकी क्रियाशीलता कम हो जाती है।
- मैक्रोफेज – स्वभाव में फेगोसाइटिक होती है तथा अपमार्जक कोशिकाएं भी कहलाती है। मस्तिष्क की ग्लियल कोशिका, यकृत की कुफ्फर कोशिका तथा रुधिर की मोनोसाइट इसी प्रकार की कोशिका है।
- मास्ट कोशिकाएँ – यह एलर्जी क्रियाओ में भाग लेती है तथा शरीर की रक्षा में कार्य करती है। यह निम्न उत्पाद बनती है।
- हिपेरिन – यह रुधिर को जमने से रोकता है।
- हिस्टामिन – यह एलर्जी की अवस्था में उत्तेजना पैदा करता है।
- सिरोटोनिन – यह वाहिका संकीर्णक है।
- लसिका कोशिकाएं – ये शरीर में प्रतिरक्षियों के संश्लेषण एवं संवहन का कार्य करती है। ये ऊतकों की जीवाणुओं और हानिकारक पदार्थो से रक्षा करती है।
- प्लाज्मा कोशिकाएं – ये लसिका कोशिकाओं के समान प्रतिरक्षी पदार्थो का संश्लेषण करती है।
वास्तविक संयोजी ऊतक के प्रकार (types of true connective tissue)
- अन्तराली संयोजी ऊतक – यह त्वचा के निचे, खोखले अंगो व धमनी तथा शिराओ की भित्तियों पर पाया जाता है। यह ऊतक विभिन्न ऊतकों के बीच का स्थान भरने तथा उन्हें जोड़ने व अंगो को उनके स्थान पर बनाये रखने में सहायता करता है।
- वसा ऊतक – मुख्य कोशिकाओं वसा कोशिका या एडिपोसाइट होती है, जिनमे वसा संगृहीत रहती है। व्हेल का ब्लबर, ऊट का कूबड़ तथा मैरिनो भेड़ की मोटी पूँछ मुख्यतः वसा ऊतक की बनी होती है।
- श्वेत तन्तुमय ऊतक – मैट्रिक्स में केवल कोलेजन तन्तु एवं मुख्यतः फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ पायी जाती है। यह टेण्डन्स या कंडराओं का निर्माण करता है जो पेशी को अस्थि से जोड़ता है।
- पित लोचदार ऊतक – यह इलास्टिन तन्तुओं का बना होता है जिसके कारण यह लचीला होता है। यह लिगामेन्ट का निर्माण करता है जो एक अस्थि को दूसरी अस्थि से जोड़ता है। इसमें तन्यता पायी जाती है।
- जालिकामय संयोजी ऊतक – इस ऊतक में मुख्य – कोशिका मैक्रोफेज होती है। यह ऊतक प्लीहा में लाल पल्प तथा सफ़ेद पल्प के रूप में थाइमस, अस्थि मज्जा, तथा आन्त्र के पेयर के चकतों में पाया जाता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा में सहायक है।
- श्लेष्मी संयोजी ऊतक – यह मुर्गे की कलंगी, भ्रूण की आवल तथा आँख के विटर्स ह्यूमर में पाया जाता है।
कंकालीय संयोजी ऊतक (skeletal connective tissue)
यह ऊतक (Tissue) शरीर का अन्तःकंकाल बनाता है तथा मिजोड़र्म से विकसित होता है। यह अंगो को आधार प्रदान करता है। यह दो प्रकार का होता है।
- अस्थि
- उपास्थि
अस्थि – मिसोडर्मि कोशिकाएं अर्थात आस्टीओसाइट अस्थि का निर्माण करती है। अस्थिनिर्माण की प्रक्रिया को ऑस्टियोजेनेसिस या अस्थिभवन कहते है। अस्थि के मैट्रिक्स को ओसिन कहते है। मैट्रिक्स का लगभग 62% भाग अकार्बनिक लवणों का तथा 38% भाग कार्बनिक पदार्थ का बना होता है। अस्थि संयोजी ऊतक की परत पैरिऑस्टियम से ढकी रहती है। स्नायु तथा कण्डरा अस्थि से इसी झिल्ली द्वारा जुड़े रहते है। स्तनधारियों की लम्बी अस्थियो के मैट्रिक्स में एक हैवर्सियन नलिका के चारो ओर संकेद्रित लैमिली के बीच, पंक्तियो में ऑस्टियोसाइट होती है।
अस्थि की 4 से 20 तक संकेद्रिय लैमिली प्रत्येक हैवर्सियन नलिका को गोलाई में घेरती हैं। ऐसी एक पूरी संरचना को हैवर्सियन तंत्र या ऑस्टिऑन कहते है। हैवर्सियन नलिकाएं मुख्य अक्ष के समान्तर होती है तथा क्षैतिज वोल्कमैन नलिकाओं द्वारा जुड़ी रहती है।हैवर्सियन तंत्र का मुख्य कार्य रुधिर द्वारा अस्थि के भीतर पोषक पदार्थों तथा ऑक्सीजन का परिवहन करना है। जिन अस्थियो में हैवर्सियन तंत्र पाया जाता है उन्हें सहंत अस्थि कहते है। यदि किसी अस्थि को जलाया जाए तो कार्बनिक पदार्थ जल जाता है तथा अकार्बनिक पदार्थ राख के रूप में शेष रह जाता है।
उपास्थि – यह ऊतक भ्रूणीय अवस्था का निर्माण करता है। व्यस्क अवस्था में यह केवल शरीर के कुछ भागों जैसे – लेरिंक्स, ट्रैकिया ब्रोंकाइ आदि में ही मिलता है तथा शेष भाग में अस्थियाँ पायी जाती है। उपास्थि की रचना तीन घटको द्वारा होती है।
(1) पेरिकॉन्ड्रियम (2) मैट्रिक्स (कॉन्ड्रिन) (3) कोण्ड्रियोसाइटस
रचना के आधार पर उपास्थि चार प्रकार की होती है : –
- प्रभासी उपास्थि – यह उपास्थि नीले रंग की तथा पारदर्शी होती है। यह उपास्थि सबसे अधिक लचीली होती है। यह जो उपास्थि होती है वो श्वास नली की दीवार, पसलियों के सिरों, टाँगों की अस्थियों, लैरिंक्स आदि में पायी जाती है।
- श्वेत तंतुमय उपास्थि – यह उपास्थि सफ़ेद रंग की होती है। इसमें मोटे – मोटे श्वेत कोलेजन तंतु पाये जाते है। ये उपास्थिया कशेरुकाओं के मध्य स्थित अन्तरा कशेरुक गद्दियों तथा स्तनियों की श्रोणि मेखला के प्यूबिक सिम्फाईसिस आदि में पायी जाती है।
- लचीली तंतुमय उपास्थि – यह उपास्थि प्रभासी उपास्थि के समान होती है, परन्तु इसके मैट्रिक्स में पिले व लचीले इलास्टिन तंतुओ का जाल फैला रहता है। यह उपास्थि अपारदर्शक होती है और नाक के सिरे पर एपिग्लॉटिस तथा कान के पिन्ना आदि में पायी जाती है।
- केल्सिफाइड उपास्थि – यह आरम्भ में प्रभासी उपास्थि के समान होती है, परन्तु इसके मैट्रिक्स में कैल्शियम लवण जमा हो जाते है, जिसके कारण यह उपास्थि अस्थि के समान कठोर हो जाती है। मेढ़क की अंश मेखला की सुप्रासकेपूला और श्रोणि मेखला इसी उपास्थि की बनी होती है।
द्रव या तरल संयोजी ऊतक (fluid connective tissue)
रुधिर व लसिका द्रव या तरल संयोजी ऊतक होते है। वास्तव में तरल संयोजी ऊतक का रूपांतरण होता है। यह ऊतक शरीर भ्रमण करता है। जिसके कारण इसको तरल ऊतक भी कहते है। यह शरीर का लगभग 8% भाग होता है।
रुधिर क्या होता है ? (What happens to blood)
लाल, चमकीला, चिपचिपा स्वाद में नमकीन क्षारीय तरल द्रव इसे रक्त कहते है। इसका PH मान 7.35 होता है। मानव शरीर में रक्त का निर्माण भ्रूण अवस्था में यकृत के द्वारा होता है। किन्तु अल्प मात्रा में प्लीहा (Spleen) तथा पसलियों में भी होता है व्यस्क अवस्था में इसका निर्माण Bone Merrow से होता है। जीव विज्ञानं की वह शाखा जिसके अंतर्गत रक्त का अध्ययन किया जाता है उसे हीमेटोलॉजी कहते है। रक्त या रुधिर कणिकाएँ या रुधिर कोशिकाएँ निम्न तरह की होती है।
- RBC या लाल रुधिर कणिकाएँ – RBC को लाल रक्त कणिकाएँ या एरिथ्रोसाइट्स नामो से जाना जाता है। मनुष्य की RBC गोल अण्डाकार होती है। ये हल्के पिले रंग की होती है, किन्तु लाखों की संख्या होने पर लाल रंग की दिखाई देती है स्तनियों के RBC को छोड़कर बाकि जीवों की RBC में केन्द्रक पाया जाता है। कशेरुकीयो में ही RBC 99% होती है मेढ़क की RBC में केन्द्रक होता है। मानव की RBC – 7.4 μm व्यास, मोटाई 1-1.5 μm, एवं रंग हल्का पीला होता है।
- WBC या सफ़ेद रुधिर कणिकाएँ – WBC को White Blood Carpals या ल्यूकोसाइड कहा जाता है। ये केन्द्रक युक्त रंगहीन पूर्ण कोशिका होती है ये RBC से बड़ी संख्या में RBC से कम तथा अनियमित आकार प्रदर्शित करती है। इनकी संख्या 5 हजार से 10 हजार प्रतिघन mm होती है। रोगियों के शरीर में इसकी मात्रा बड़ जाती है। WBC का निर्माण अस्थिमज्जा, प्लीहा, थाइमस ग्रंथि, लिम्फनोड, माइलोसाइट्स से WBCs का निर्माण होता है। WBC का बनंना माल्युकोसिस कहलाता है। WBCs का जीवन काल 15 घण्टे से 2 दिन होता है। जब WBC की संख्या बड़ जाती है तो ल्यूकोसाइपेसिस कहते है, और कम होने पर ल्यूकोपीनिया कहते है। इनकी संख्या 5000 प्रति घन mm से कम होती है। टाइफाइड में WBC की संख्या कम हो जाती है।
प्लाज्मा (Plasma) क्या होता है ?
यह रक्त का तरल तथा निर्जीव भाग है, यह रक्त का लगभग 55- 60% भाग बनाता है। यह शरीर के भार के 5% होता है। यह रक्त के मैट्रिक्स को बनाता है। यह रंगहीन होता है किन्तु अधिक मात्रा में होने पर पीला होता है। Chemical Composition Of Plasma – प्लाज्मा में जल – 91-92%, ठोस पदार्थ 8-9%, कार्बनिक पदार्थ – 7%,अकार्बनिक पदार्थ – 1% आदि होते है।
प्लाज्मा में अकार्बनिक पदार्थ जैसे : Nacl, NaHco3 सोडियम बाई कर्बोनेट प्रमुख रूप से है। इसके अलावा इसमें Cl, mg, K, F, S आदि अल्प मात्रा में होते है। ये प्लाज्मा के लवण जल में घुलकर अम्लीय प्रभाव को कम करते है। तथा प्लाज्मा को हल्का क्षारीय बनाते है। प्लाज्मा में O2, Co2 तथा N2 भी घुली होती है।
लसीका lymph क्या होती है ?
लसीका अपारदर्शी क्षारीय तरल है जो रुधिर कोशिकाओं तथा ऊतक के बीच उपस्थित होता है। लसिका में RBCs अनुपस्थित व प्लाज्मा प्रोटीन की कम मात्रा होती है। लसिका में कैल्शियम व फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। लसिका में प्लाज्मा तथा ल्यूकोसाइट पायी जाती है।
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पेशीय ऊतक (Muscle Tissue)
पेशीय ऊतक भ्रूणीय मिसोडर्म से विकसित होता है। पेशिया शरीर का लगभग 50% भाग बनाती है। पेशीय ऊतक का विशिष्ट गुण संकुचनशीलता है। पेशी में संकुचन तथा शिथिलन होता है, लेकिन इनमे प्रसार नहीं होता है। पेशी कोशिकाओं को पेशी तंतु भी कहते है। पेशी तंतु की प्लाज्मा झिल्ली को सारकोलेमा कहते है। पेशी तंतु के कोशिका द्रव्य को सारकोप्लाज्म कहते है।
पेशीय ऊतक को निम्नलिखित तीन पेशियों में विभाजित किया गया है।
- रेखित पेशिया – रेखित पेशियाँ, अस्थियो से कण्डराओ के द्वारा जुड़ी रहती है तथा इच्छानुसार हिलायी जा सकती है, इसलिए इन्हे ऐच्छिक या कंकालीय पेशियाँ भी कहते है। प्रत्येक पेशीय तन्तु पर क्रमशः गहरे (A) तथा हल्के (I) पट्ट होते है। I पट्ट के मध्य में एक गहरी Z रेखा उपस्थित होती है। A – डिस्क को दो भागो में बाटने वाली एक पतली हेंसन की डिस्क या M रेखा पायी जाती है। दो Z डिस्को के बिच का भाग सरकोमियर कहलाता है। सारकोमीय पेशीय तंतु की कार्यात्मक इकाई होती है। मायोफाइब्रिल्स घने मायोसीन तथा पतले एक्टीन तंतुओ के बने होते है। रेखित पेशिया पैर, जीभ, ग्रासनली आदि में पायी जाती है।
- अरेखित पेशियाँ – अरेखित या सरल पेशियाँ हमारी इच्छा के अनुसार काम नहीं करती है, इसलिए अनैच्छिक पेशियाँ कहलाती है। यह पेशियाँ पतली, लम्बी तर्कुरूप तथा तंतुमय पेशी कोशिकाओं की बनी होती है। प्रत्येक पेशी कोशिका में सारकोलेमा द्वारा घिरा केन्द्रक युक्त पेशी द्रव्य या सारकोप्लाज्म पाया जाता है। ये पेशियाँ स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के नियंत्रण में एक निश्चित लय में संकुचित होती रहती है। कार्यात्मक रूप से अरेखित पेशियाँ दो प्रकार की होती है एकल इकाई तथा बहु इकाई। एकल इकाई सरल पेशिया मूत्राशय तथा जठरांत्र मार्ग में उपस्थित होती है।
- हृदय पेशियाँ – हृदय पेशियाँ मुक्त रूप से हृदय की दीवारों में पायी जाती है। हृदय पेशियों में जोड़े गए डिम्ब दो तंतुओ के संधि स्थानों पर उपस्थित होती है। हृदय पेशियाँ अपनी उत्तेजक लहर उत्पन्न करती है। इसमें जुड़े हुए डिम्ब, उत्तेजक लहरों को बढ़ाने का कार्य करते है।
तंत्रिका ऊतक (Nervous Tissue)
तंत्रिका ऊतक का निर्माण एक्टोडर्म से होता है। इसमें दो प्रकार की कोशिकाएं अर्थात तंत्रिका कोशिका तथा न्यूरोग्लिया कोशिकाएँ उपस्थित होती है।
- तंत्रिका कोशिका – न्यूरॉन में एक बड़ी कोशिका काय, साइटोन, पैरिकेरिऑन पायी जाती है। इससे कोशिका द्रव्य के बने पतले प्रवर्ध डेन्ड्राइट तथा एक लम्बा प्रवर्ध एक्सॉन निकलता है। कोशिका में एक केन्द्रक होते है। कोशिका काय में अनेक असममित आकार के बड़े – बड़े निसल के कण उपस्थित होते है। एक्सॉन की कोशिका कला को एक्सोलेमा तथा कोशिका द्रव्य को एक्सोप्लास्म कहते है। एक्सॉन दूर स्थित छोर पर छोटी – छोटी शाखाओं में विभाजित हो जाता है, जिसे तिलोडेन्ड्रिया कहते है।
- न्यूरोग्लिया कोशिकाएं – यह कोशिकाएं 6 प्रकार की होती है जिसमे 4 प्रकार की केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में तथा 2 प्रकार की परिधीय तंत्रिका में पायी जाती है।
- एस्ट्रोसाइट्स – ये मस्तिष्क के ऊतक में पायी जाती है। ये तंत्रिका संचारी पदार्थो के उपापचय में भाग लेती है, तंत्रिकीय प्रेरणाओं की उत्पत्ति के लिए K+आयनों का संतुलन बनाए रखती है तथा रुधिर से पदार्थो के आदान – प्रदान एवं मस्तिष्क की वृद्धि में सहायता करती है।
- ओलिगोडेन्ड्रोसाइटस – ये मस्तिष्क के ऊतक में सबसे अधिक पायी जाती है। ये तंत्रिका तंतुओ के चारो ओर एक मायलिन खोल बनाकर इनकी सुरक्षा करती है।
- माइक्रोग्लिया – ये रुधिर की मोनोसाइट कोशिकाओं से व्युत्पन्न होती है, जो CNS के ऊतक में पहुंचने वाले रोगाणुओं तथा कोशिकीय मलवे का भक्षण कर इनका विघटन करती है।
- इपेन्डाइमल कोशिकाएं – ये घनाकार या स्तम्भी, ज्यादातर रोम वाली कोशिकाएं होती है जो CNS की गुहाओं के चारो और एपिथीलियम बनाती है। ये इन गुहाओं में भरे सेरिब्रोस्पाइनल तरल का स्त्रावण करती है।
- अनुचर कोशिकाएं – कुछ तंत्रिका कोशिकाएँ CNS के बाहर छोटे – छोटे समूहों में पायी जाती है जिन्हे गुच्छक कहते है।
- न्यूरोलेमोसाइटस या श्वान कोशिकाएँ – ये PNS के तंत्रिका तंतुओ के चारो मायलिन खोल बनाती है।
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