Human Diseases : मनुष्य में होने वाले रोग, लक्षण और उपचार।
मानव शरीर भी एक मशीन की तरह है। इसमें भी कई तरह की खराबी, बीमारी हो सकती है। कुछ ऐसे रोगो का विज्ञानं ने पता कर रखा है जो मनुष्य में अक्सर होता है। आज की इस पोस्ट में हम ऐसे कुछ रोग, मनुष्य में होने वाले रोग, लक्षण और उपचार (Human diseases, symptoms and treatment) आदि के बारे में बात करेंगे।
GK Hindi Quiz ब्लॉग की हर पोस्ट की तरह इस पोस्ट के भी अंत में आपको इस टॉपिक से जुड़े महत्वर्प प्रश्न और उत्तर मिलेंगे। जिसे आप इस पोस्ट को पढ़ने के बाद हल जरूर करे। और इस Human Diseases Quiz में आपको इतने नंबर मिले यह हमें कमेंट्स में जरूर बताये।
What are human diseases मानव रोग क्या होते है ?
मनुष्य में स्वास्थ्य शरीर की वह अवस्था है, जिसमें शरीर शारीरिक, मानसिक एवं कार्यिकीय रूप से पूर्णतया सही होता है जबकि रोग शरीर की वह अवस्था है, जिसमें संक्रमण, दोषपूर्ण आहार, आनुवंशिक एवं पर्यावरणीय कारको द्वारा शरीर के सामान्य कार्यो एवं कार्यिकी में अनियमिततायें उत्पन्न हो जाती है। संक्रमण रोगाणु का सुग्राही पोषी में भेदन, स्थरीकरण तथा उसकी वृद्धि है। रोगाणु गमन कीअभिकर्ता जैसे – जल, भोजन, तथा अन्य कारकों के द्वारा होता है। उदाहारण – मक्खियों, मच्छरों, कीटों द्वारा।
सरल भाषा में कहे तो – जब मनुष्य शारीरिक, मानसिक एवं कार्यिकीय रूप से स्वस्थ महसूस नहीं करता है तो वह किसी रोग से ग्रषित होता है या हो सकता है। इसके कई कारण हो सकते है। और इन्ही कारणों, लक्षणों, रोगो के आधार पर इन्हे कुछ नाम दे दिया जाता है जिसे मनुष्य रोग (Human Diseases) कहते है।
रोग के प्रकार (Types Of Disease)
मनुष्य रोग (Human Diseases) तीन प्रकार के होते है।
- संचरणीय रोग (communicable disease)
- असंचरणीय रोग (non-communicable disease)
- अनुवांशिक रोग (genetic disease)
संचरणीय रोग – ऐ ऐसे रोग होते है जो रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन, कीट या शारीरिक संपर्क द्वारा फैलते है। ये रोग शरीर पर जीवाणु, विषाणु, प्रोटोजोआ या कवक वर्ग के सूक्ष्मजीवों के संक्रमण के कारण होते है। इन सूक्षमजीवो को रोगाणु भी कहते है। संचरणीय रोग निम्न प्रकार के होते है।
- संसर्गज – यह रोग किसी व्यक्ति के सीधे संपर्क से फैलता है।
- असंसर्गजा – यह रोग किसी व्यक्ति के सीधे संपर्क में आये बिना ही फैलता है।
- रुधिर द्वारा – यह संचरणीय रोग जैसे ही होते है।
असंचरणीय रोग – ये ऐसे रोग है जो रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में नहीं फैलते है। बल्कि शरीर में कुछ कमी होने से होता है। कुछ असंचरणीय रोग पोषक तत्वों की शरीर में कमी के कारण होते है जिन्हे हीनताजन्य रोग कहते है।
आनुवंशिक रोग – जो रोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होते है, उन्हें आनुवंशिक रोग कहते है। यह रोग डीएनए में गड़बड़ी, उत्परिवर्तन यानि म्यूटेशन के कारण होती है। उत्परिवर्तन केवल एक जीन या पुरे क्रोमोजोम में होता है।
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जीवाणु जनित रोग Bacterial Diseases
मनुष्य रोगो (Human Diseases) में कुछ रोग ऐसे होते है जो जीवाणुओं से फैलते है जिन्हे जीवाणु जनित रोग Bacterial Diseases कहते है। कुछ जीवाणु जनित रोग निम्न है।
टी बी या क्षय रोग (TB or tuberculosis)
यह एक मनुष्य में होने वाला रोग (Human Diseases) है। यह रोग छड़ाकार माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के द्वारा उत्पन्न होता है। यह सामान्यतः फेफड़ो पर आक्रमण करता है और साथ ही यह शरीर के दूसरे अंगो को भी प्रभावित करता है, जिसमे दिमाग भी शमिल है। बैक्टीरिया ट्यूबरक्यूलिन नामक विष उत्पन्न करता है। यह खाँसने, छींकने, बातचीत करने तथा शरीर से निकलने वाली जल की बुँदे, लार आदि से फैलता है। यह एक घातक रोग है। हमारे देश में लगभग 5 लाख लोग प्रतिवर्ष इस बीमारी से मरते है। यह सामान्यतः जो तंग, संकरे, बंद आवासों में रहते है ऐसे लोगो को होती है।
- टी बी या क्षय रोग के लक्षण – उच्च ज्वर, खाँसी, लार के साथ रक्त आना, छाती में दर्द, भार में कमी आदि।
- टी बी या क्षय रोग का उपचार – प्रतिरक्षीकरण, BCG के टीको के द्वारा तथा मरीज के पृथक्क़रण, सफाई, प्रतिजैविक औषधि (रिफाम्पिसिन + आइसोनियाज़िड, पाइराजिनामाइड तथा इथैम्ब्यूटाल) आदि से इसका उपचार संभव है।
डिप्थीरिया (Diphtheria) या गलाघोंटू
डिफ्थीरिया 2-5 वर्ष तक के बच्चों को होने वाला एक गंभीर रोग है। यह व्यस्को पर भी आक्रमण करता है। इस रोग में महामारी के रूप में फैलने की प्रवृति होती है। इस रोग से लाखों के समान आकृति वाले कोरिनेबैक्टेरियम डिप्थेरी जीवाणु के द्वारा उत्पन्न होता है। यह सामान्यतः नाक, गले एवं टाँसिल की म्यूकस झिल्ली पर आक्रमण करता है। इसे गलाघोंटू भी कहते है।
- डिप्थीरिया के लक्षण – उच्च ज्वर, गले के घाव, गले में अर्ध्य ठोस पदार्थ की उबकाई (गले का खट्टा होना) आदि।
- डिप्थीरिया रोग का उपचार – डी पी टी (DPT) के टिके द्वारा।
Haiza हैजा (Cholera)
यह एक मनुष्य में होने वाला रोग (Human Diseases) है। हैजा तेजी से फैलने वाला अतिसारी रोग है। यह कोमा आकृति के चलायमान जीवाणु के कारण होता है जिसे विब्रियो कोलेरी कहा जाता है। यह जीव आंत में रहता है। यह संक्रमण संदूषित भोजन एवं जल के द्वारा होता है।
- हैजा के लक्षण – माँसपेशियों में ऐंठन आने लगती है, बॉडी में पानी की कमी महसूस होने लगती है, जलीय मल त्याग, उल्टी आदि।
- हैजा की रोकथाम के उपाय – उचित सामुदायिक स्वास्थ्य सुविधाएँ, व्यक्तिगत स्वच्छ्ता तथा उबला हुआ जल एवं गर्म भोजन का सेवन करे आदि।
टिटेनस या धनुषतम्बा (Tetanus)
यह अवायवीय बेसिलस क्लोस्ट्रीडियम टिटैनी के द्वारा होने वाला रोग है। बेसिलस चोट, जले हुए भागों एवं अनुचित रूप से जीवाणुविहीन किये गये शल्य चिकित्सीय उपकरणों का उपयोग करने पर भी शरीर में प्रवेश कर जाते है। संक्रमण, जीवाणु के बीजाणुओं के शरीर में प्रवेश करने पर होता है। यह बीजाणु, घावों, दुर्घटना तथा गलियों की धूल में भी उपस्थित रहते है क्योकि जंतु इन स्थानों से गुजरते समय मल पदार्थों को निकालते जाते है।
- टिटेनस के लक्षण – पेशीय द्रढ़ता, जबड़ा बंद होना, तथा पेशियों में दर्द।
- टिटेनस के रोकथाम के उपाय – घाव के बाद 24 घंटे के अन्दर ए टी एस (ATS) का टिका दिया जाना चाहिए।
परट्यूसिस या काली खांसी (pertussis or whooping cough)
यह मुख्यतः बच्चों में होने वाला रोग है। यह सामान्यतः बड़े बच्चों में अधिक घातक नहीं होती है लेकिन नवजातों में यह प्राण घातक भी होती है, जो की श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है तथा यह बोरडिटेला परट्यूसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है। यह सीधे संपर्क व छींक, खाँसी आदि से एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है।
- काली खाँसी के लक्षण – तेज बुखार, खाँसी, वमन व खाँसने पर ‘वुप’ की आवाज आदि।
- काली खांसी के रोकथाम के उपाय – डी पी टी (DTP) के टिके द्वारा।
डायरिया (Diarrhea) या अतिसार
यह रोग सालमोनेला टायफीम्यूरियम तथा शाइजैला शीजी के द्वारा उत्पन्न होता है। यह दूषित माँस तथा दूसरे प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थो के द्वारा फैलता है। ई कोलाई के द्वारा निष्कासित टॉक्सिन मंद अतिसार (आंत का तरल एवं शीघ्र मलोत्सर्ग) से गंभीर निर्जलीकरण उत्पन्न करता है। इसे रुधिर एवं म्यूकस सहित शीघ्र मलोत्सर्ग तथा उदरीय मरोड़ के द्वारा पहचाना जाता है.
- डायरिया के लक्षण – उल्टी, मतली, सिरदर्द, तथा श्लेष्म रुधिर के साथ मल का शीघ्र त्याग तथा उदरीय पीड़ा आदि।
- डायरिया के रोकथाम के उपाय – अधिक से अधिक लिक्विड पदार्थ जैसे पानी और जूस लेना चाहिए। अधिक गंभीर मामलों में इंट्रावेनस इंजेक्शन के जरिए लिक्विड पदार्थों को शरीर में पहुंचाया जाता है।
न्यूमोनिया (Pneumonia)
न्यूमोनिया फेफड़ो का एक गंभीर रोग होता है। लसिका एवं म्यूकस एल्विओलाई तथा ब्रोंकिओल्स में एकत्रित हो जाते है। इसके परिणामस्वरूप फेफड़े जीवन को सहारा प्रदान करने के लिए पर्याप्त वायु प्राप्त नहीं कर पाते है। यह रोग डिप्लोकोकस न्युमोनी के द्वारा होता है। यह सामान्यतः इन्फ्लुएंजा जैसे अन्य रोगो के संक्रमण के कारण निम्न शारीरिक प्रतिरोधकता के कारण उत्पन्न होता है। इस रोग का संक्रमण रोगी के थूक के द्वारा फैलता है।
- न्यूमोनिया के लक्षण – अचानक ठण्डा होना, छाती में दर्द, भूरे श्लेष्म के थूक के साथ खाँसी, तथा तापमान में वृद्धि।
- न्यूमोनिया के रोकथाम के लक्षण – औषधियों जैसे इरिथ्रोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन, आदि का उपयोग करना चाहिए।
गोनोरिया (Gonorrhea)
गोनोरिया डिप्लोकोकस बैक्टीरियम नीसेरिया गोनोरिआई के द्वारा होता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति मूत्रण के दौरान जलन का अनुभव करते है। इस रोग से मूत्र – जनन तंत्र की म्यूकस झिल्ली प्रभावित होती है तथा यह लैंगिक सम्पर्क के द्वारा फैलता है। इस रोग का संक्रमण शरीर के अन्य भागों में फ़ैल सकता है एवं आर्थाइटिस (गठिया) तथा मादा बन्ध्यता को उत्पन्न करता है। इस रोग से प्रभावित माता के बच्चे प्रायः नेत्र संक्रमण (गोनोकोकल ऑफ्थेल्मिया) से पीड़ित होते है।
- गोनोरिया के लक्षण – जनदो के चारो ओर दर्द, मूत्र निष्कासन के समय जलन।
- गोनोरिया के रोकथाम के उपाय – पेनिसिलिन, एम्पीसिलिन का उपयोग तथा उच्च चारित्रिक लक्षणों का वहन करके इस रोग का उपचार किया जाता है।
सिफलिस (Syphilis)
सिफलिस स्पाइरोकिट बैक्टेरियम ट्रेपोनिमा पैलिडियम के द्वारा होती है। यह रोग जननिक मलाशयी एवं मुखीय क्षेत्रो में म्यूकस झिल्ली को प्रभावित करता है तथा घाव उत्पन्न करता है। यह संक्रमण संपर्क के द्वारा होता है यह रोग माता से उसके नवजात शिशु में संचरित हो सकता है।
- सिफलिस के लक्षण – जनदो का दर्द रहित छाले तथा स्थानीय लसिका ग्रंथियों पर सूजन, झुर्रियों, बालो का झड़ना, संधियों में सूजन तथा फ्लूनुमा बीमारी।
- सिफलिस के रोकथाम के उपाय – पेनिसिलिन, टेट्रासाइक्लीन आदि के द्वारा इस बीमारी को रोका जाता है।
टाइफाइड (Typhoid)
इस रोग से लाखों के समान चलायमान जीवाणु साल्मोनेला टायफी के द्वारा होता है। यह जीव आंत्र में रहता है तथा आंत्रीय भित्ति को चोटग्रस्त कर देता है। यह रोग संदूषित भोजन एवं जल, खाद्य पदार्थों, दूध, तथा आंत्रीय के मुक्त पदार्थो से युक्त मक्खियों के द्वारा फैलता है।
- टाइफॉइड के लक्षण – उच्च ज्वर, विक्षतों तथा आंत्रीय दीवार में फोड़ो का होना।
- टायफॉइड के रोकथाम के उपाय – एम्पीसिलिन, क्लोरमफैनिकोल के द्वारा इस बीमारी का उपचार किया जाता है।
कोढ़ (Leprosy) या हेनसन या कुष्ठ रोग
यह एक मनुष्य रोग (Human Diseases) है। जो एक प्रकार का कुष्ठ रोग एक दीर्घस्थाई संक्रामक रोग है जो की गर्म वातावरण वाले स्थानों में महामारी के रूप में पाया जाता है। यह रोग बेसिलस माइकोबैक्टीरियम लैप्री के द्वारा उत्पन्न होता है। जिसकी खोज हैन्सेन के द्वारा की गई थी। यह प्राकृतिक रूप त्वचा से म्यूकस झिल्ली तथा परिधीय तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है परन्तु यह आतंरिक अंगो को भी प्रभावित करता है।
- कोढ़ के लक्षण – त्वचा पर धब्बे, शरीर के अंगो में निम्बपन, ज्वर, अन्तः फोड़े, नोड्यूल्स, अँगुलियों के आकार में बदलाव, अंगूठे तथा कटिय शरीर भागों में शल्कीय धब्बों का उत्पन्न होना।
- कोढ़ के रोकथाम के उपाय – सफाई तथा उपयुक्त औषधियों जैसे -डैपसोन, रिफम्पसिन, ऑफ्लोक्सिन तथा चालमुगरा का तेल से कोढ़ को रोका जा सकता है।
प्लेग/ब्यूबोनिक प्लेग (काली मृत्यु) Plague/Bubonic Plague (Black Death)
प्लेग मुख्य रूप से चूहों की बीमारी है नियमित रूप से चूहों की आबादी को नियंत्रित करती है मनुष्य संयोगवश इस बीमारी का शिकार हो जाता है। यह एक छड़नुमा अचल बैक्टीरिया पाश्चुरेला पेस्टिस के द्वारा होता है। यह चूहों से चूहों में एक पिस्सू जिनोप्सिला चियोपिस के द्वारा फैलता है। चूहे के मरने पर पिस्सू चूहे को छोड़ देते है और मनुष्य को काटते है, और रोगकारक को मनुष्य में पहुँचा देते है। घर में चुंहो की मौत प्लेग का संकेत होती है। यह रोग सामान्यतः मनुष्य से मनुष्य में नहीं फैलता है।
- प्लेग के लक्षण – काँख तथा उपस्थ दर्द्युक्त वल्वो के रूप में सूज जाते है। उच्च ज्वर, ठण्डापन, थकान तथा रक्त स्त्राव (जो काळा रंग में परिवर्तित हो जाता है) आदि प्लेग के लक्षण है।
- प्लेग के रोकथाम के उपाय – इसका उपचार, प्रति – प्लेग टीको एवं कीटनाशकों के छिड़काव (जो चूहों को मार दे) द्वारा किया जाता है।
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विषाणु जनित रोग (Viral Disease)
मनुष्य रोगो (Human Diseases) में कुछ रोग ऐसे होते है जो विषाणुओ से फैलते है जिन्हे विषाणु जनित रोग (Viral Disease) कहते है। कुछ विषाणु जनित रोग निम्न है।
एड्स (AIDS)
एड्स एक विषाणु जनित रोग है। एड्स का विषाणु HIV कहलाता है। यह एक RNA विषाणु है। सर्वप्रथम ल्युमोन टैगनियर ने सन 1984 में पाश्चार इंस्टीट्यूटऑफ़ पैरिस में एड्स विषाणु की खोज की। एड्स का विषाणु सर्वप्रथम बंदरो से मनुष्य में पहुँचा। यह सर्वप्रथम अफ़्रीकी मानवों में पाया गया। एड्स का वायरस रिट्रोवायरस प्रकार का होता है। जो मानव कोशिका में व्युत्पन्न ट्रांसक्रिप्शन करके स्वयं की एक DNA कॉपी बनाता है। इसका बाह्य स्तर ग्लाइकोजन 120 का बना होता है। T – लिम्फोसाइड प्रतिरक्षी प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इनके संक्रमण से प्रतिरक्षा प्रणाली निष्क्रिय हो जाती है। तथा रोगी में अन्य रोगो की सम्भावना प्रबल हो जाती है। यह अवस्था एड्स कहलाती है।
- एड्स के लक्षण – फेफड़ो में संक्रमण, लगातार खाँसी, छाती में दर्द व लगातार ज्वर, शरीर का वजन कम होना, पेट में दर्द, व्यावहारिक परिवर्तन, याददाश्त कमजोर होना आदि।
- एड्स के रोकथाम के उपाय – जिडोवुडीन नामक दवाई एड्स के उपचार में प्रयुक्त होती है।
बड़ी माता या चेचक (big mother OR smallpox)
यह रोग अत्यधिक संक्रामक रोग है। यह वेरिओला वायरस के द्वारा होता है। इसकी शुरुआत अचानक तेज ज्वर के साथ होती है जिसके द्वारा सिर दर्द, पीठ दर्द, तथा पुरे बदन में तीव्र दर्द होता है। तीसरे या चौथे दिन त्वचा पर लाल निशान पढ़ जाते है। जो बाद में दानों का रूप ले लेते है। जिनमे एक साफ द्रव भरा होता है।
- चेचक के लक्षण – सिर दर्द, पीठ दर्द, तथा पुरे बदन में तीव्र दर्द।
- चेचक के रोकथाम के उपाय – इसके लिए चेचक का टिका लगता है।
छोटी माता (चेचक)
यह बच्चो में पाया जाने वाला संक्रामक रोग है। यह सामान्यतः 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चो को होता है। यह चिकनपॉक्स (वेरिसेला जोस्टर) वायरस के द्वारा होता है। इस रोग में त्वचा पे औस की बूंदो के समान फोले पढ़ जाते है। यह रोग त्वचा के सीधे संपर्क या संक्रमित कपड़ो व वस्तुओ से फैलता है।
- छोटी माता के लक्षण – ज्वर, फफोले एवं सामान्य परेशानी।
- छोटी माता (चेचक) का उपचार – टिका
खसरा (Measles)
यह 3 से 5 वर्ष के बच्चो में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला घातक रोग है। यह रूबेला वायरस के द्वारा होता है। इसमें ज्वर, नाक की म्यूकस झिल्ली में सूजन, आँखों में लालिमा, उतरा हुआ चेहरा, भूख की कमी आदि इसके लक्षण है। अंत में त्वचा पर लाल दाने पड़ जाते है। यह रोग खाँसी व छींक से फैलता है। एक बार खसरा होने के बाद जीवन भर के लिए प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है।
- खसरा के लक्षण – ज्वर, नाक की म्यूकस झिल्ली में सूजन, आँखों में लालिमा, उतरा हुआ चेहरा, भूख की कमी आदि।
- खसरा के रोकथाम के उपाय – विटामिन – A दिया जाता है, एक साल की उम्र में एम एम आर टीकाकरण (गलसुआ, खसरा, रुबैला) किया जाता है।
गलसुआ (संक्रामक पेरोटाइटिस)
यह एक तीव्र संक्रामक रोग है जो सामान्यतः बच्चो में होता है। ये पैरामिक्सो वायरस के द्वारा होता है जो सामान्यतः लार ग्रंथियों पर आक्रमण करता है। किन्तु यह शरीर की अन्य ग्रंथियों पर भी आक्रमण कर सकता है। एक अथवा दोनों पेरोटिड ग्रंथियों में दर्द्युक्त सूजन इसका लक्षण है जो कान के पीछे पायी जाती है। मरीज को तीव्र बुखार तथा मुख खोलने में असुविधा होती है। यह वायरस सीधे संपर्क या खाँसी के द्वारा फैलता है। व्यस्को में वृषण व अण्डाशय भी संक्रमित हो सकते है।
- गलसुआ के लक्षण – उच्च ज्वर, ठण्डापन, सिरदर्द, शरीर में दर्द, भूख में कमी आदि।
- गलसुआ की रोकथाम के उपाय – सावधानियाँ, खाँसी वाले लोगो से दुरी
पोलियो या पोलियोमायलाइटिस
यह पोलियो वायरस द्वारा उत्पन्न रोग है जो गर्म सूखे प्रदेशो में अधिक होता है। अपने नाम के विपरीत यह रोग न तो आवश्यक रूप से शिशुओं में होता है। और न ही इस रोग में लकवा होना जरुरी है। यह पोलियो वायरस के कारण होता है पोलियो वायरस के कारण गले में जकड़न व तंत्रिका तंत्र का इन्फ्लेमेशन होता है। यह स्पाइनल कॉर्ड की चालक तंत्रिका कोशिकाओं को भी नष्ट कर देता है। तंत्रिका आवेग के अभाव के कारण पेशियाँ निष्क्रिय होकर सिकुड़ जाती है, जिस कारण कुछ मामलों में पैरो का लकवा हो जाता है। यह वायरस संक्रमित भोजन के साथ आहार नाल में पहुंचकर आंत्र कोशिकाओं में गुणन करता है।
- पोलियो के लक्षण – स्पाइनल कॉर्ड की चालक तंत्रिका कोशिकाओ को भी नष्ट कर देता है, एवं पोलियो वायरस मस्तिष्क के श्वसन केन्द्रो को नष्ट कर देता है।
- पोलियो के रोकथाम के उपाय – साल्क का टिका (सोबिन ओरल ड्रॉप) 6 हफ़्ते, 10 हफ्ते, 14 हफ्ते तथा बूस्टर खुराक 18-24 माह तथा द्वितीय बूस्टर खुराक 5-6 वर्ष की उम्र में देने के लिए उपलब्ध है।
इन्फ्लुएंजा/फ्लू
इसे सामान्यतः फ्लू कहते है। यह अत्यधिक संक्रामक रोग है। जिसका अभी तक इलाज नहीं खोजा जा सका है। यह कई प्रकार के वायरसों के द्वारा होता है। जैसे – मिक्सोवायरस। यह नाक, गला व ऊपरी श्वसन मार्ग की म्यूकस मेम्ब्रेन को प्रभावित करता है आराम करने से जल्दी छुटकारा मिल जाता है। इन्फ्लुएंजा के लिए कोई भी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।
- एन्फ्लूएंजा के लक्षण – नाक से द्रव का स्त्रावण छींक, बदन दर्द, ज्वर कफ, व कमजोरी आदि।
- एन्फ्लूएंजा के रोकथाम के उपाय – इसका कोई टिका नहीं है, स्वच्छता तथा सफाई द्वारा इसकी रोकथाम की जा सकती है।
रेबीज/हाइड्रोफोबिया
रेबीज बहुत घातक रोग है जोकि रेबीज वायरस के द्वारा होता है। यह संक्रमित जंतु की लार के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करता है। जोकि सामान्यतः कुत्ता, बिल्ली के काटने से भी हो सकता है। वायरस के कारण शिकार में काटने की प्रवृति उत्पन्न हो जाती है। उसे पानी से डर लगता है, अतः इसे हाइड्रोफोबिया कहते है। लम्बे इन्क्यूबेशन पर कभी कभी शिकार में प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है जो उसे रोग से बचाती है। किसी को काटने के बाद कुत्ते पर 10 दिन नजर रखनी चाहिए और यह संतुष्टि कर लेना चाहिए, की कुत्ते में रेबीज के जीवाणु नहीं है।
- रेबीज के लक्षण – पागलपन, आवाज का बदलना, अत्यधिक लार का स्त्रावण, कुत्ते में रेबीज के लक्षण है।
- रेबीज के रोकथाम के उपाय – काटे हुए व्यक्ति को शीघ्र ही टिका (पहले 14 लेकिन अब 6 खुराक) दिया जाना चाहिए।
हेपेटाइटिस (Hepatitis)
यह विषाणु द्वारा होने वाला, यकृत का शोध है इसका होने का अन्य कारण कई औषधियों, रसायनों एवं एल्कोहल का उपयोग भी है। इसे सामान्यतः पीलिया भी कहते है। संक्रमण मुख्यतया मुख या गुदा मार्ग के द्वारा होता है। आरम्भ में यकृत बड़ा हो जाता है तथा भरा हुआ प्रतीत होता है। हिपेटाइटिस विषाणु की 6 किस्मे होती है – HAV, HBV, HCV, HDV, HEV तथा हिपेटाइटिस G विषाणु (HGV) है।
- हिपेटाइटिस के लक्षण – ज्वर, अरुचि, मतली, उल्टी, पेशियों तथा संधियों में दर्द आदि।
- हिपेटाइटिस के रोकथाम के उपाय – व्यक्तिगत सफाई, उबले पानी का उपयोग, ठीक ढंग से पकाया हुआ भोजन, सफाई युक्त खाद्य उपकरण तथा मक्खियों पर नियंत्रण आदि।
helminthic diseases हेल्मिंथिक रोग
ऐस्कैरिएसिस
एस्केरिएसिस रोग गोलकृमि एस्केरिस लुम्ब्रीकोईडिस के द्वारा उत्पन्न होता है। ये गोलकृमि मानव की छोटी आंत्र में रहता है। यह स्वतंत्र अवस्था में पाया जाता है। तथा इसमें संयुक्त होने के लिए किसी भी प्रकार के अंग नहीं पाए जाते है। ये मुख के द्वारा पोषक के पचित भोजन को चूस कर ग्रहण करते है। यह बच्चो में अधिक सामान्य रूप से होता है।
- ऐस्कैरिएसिस के लक्षण – मितली, खाँसी, तथा घातक उदरीय दर्द भी होता है।
- ऐस्कैरिएसिस के रोकथाम के उपाय – सफाई तथा प्रतिहेल्मेंथिक औषधियों का उपयोग।
टीनिएसिस
सूअर के मांस में पाए जाने वाले फीताकृमि टीनिया सोलियम के द्वारा टीनिएसिस रोग उत्पन्न होता है। यह फीताकृमि मानव की आंत्र में हुक एवं चूषको के द्वारा दृढ़ता से जुड़ा हुआ रहता है। इसमें मुख का अभाव होता है तथा अपनी त्वचा से पोषक का पचित भोजन अवशोषित कर लेता है। यह एक उभयलिंगी जीव है जो स्वनिषेचन करता है। यह ठीक ढंग से न पके हुए सूअर के मांस, भोजन तथा कच्ची सब्जियाँ जो ठीक से धुली न हो, के सेवन से फैलता है।
- टीनिएसिस के लक्षण – पाचन तंत्र में गड़बड़ी, अरुचि तथा मिरगी के समान लक्षण आदि।
- टीनिएसिस के रोकथाम के उपाय – सफाई, उपयुक्त पके हुए खाद्य पदार्थ तथा प्रति हैल्मिंथिक औषधियों का उपयोग करने से।
फाइलेरिएसिस (हाथी पाँव)
फाइलेरिएसिस वुचरोरिया बैन्क्रोंफटाई के उत्पन्न होता है। इस रोग में पैर पर सूजन के कारण पैर हाथी के पैर के समान दिखाई देने लगते है। इसलिए इसे सम्मिलित रूप से एलीफेंटिएसिस कहते है। इसका संचरण एक जीव से अन्य में क्यूलेक्स मच्छर के द्वारा होता है। यह कृमि लसिका तंत्र में रहते है तथा बच्चे देते है जिन्हे माइक्रोफाइलेरी कहते है।
- फाइलेरिएसिस के लक्षण – ज्वर आता है, टाँगे सूज जाती है, तथा हाथी के पाँव के समान प्रतीत होती है।
- फाइलेरिएसिस के रोकथाम के उपाय – मच्छरों को नष्ट करना, मच्छरों को भगाने वाली क्रीमों, टिक्कियों तथा प्रतिहेल्मिन्थिक औषधियों का उपयोग करना चाहिए।
कवकीय रोग (Fungal Diseases)
दाद (Shingles)
यह रोग एक कवक माइक्रोस्पोरम के द्वारा उत्पन्न होता है। यह बिना नहाये हुई बिल्लियों, कुत्तो तथा संक्रमित मनुष्यों से फैलता है। इसमें दाने निकलते है जो बाद में लाल हो जाते है तथा भंगुर हो जाते है।
दाद के रोकथाम के उपाय – सफाई तथा स्वास्थय पर ध्यान देना चाहिए।
प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoan Diseases)
मलेरिया (Malaria)
मलेरिया रोग प्लाज्मोडियम द्वारा फैलता है। यह उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्ण क्षेत्रो का एक बहुत गंभीर रोग है। इस रोग में बुखार के दौरान रोगी ठंड एवं कपकपी महसूस करता है एवं स्थाई सिरदर्द, घबराहट, एवं उच्च ताप पाया जाता है। कुछ घण्टो के बाद शरीर से पसीना निकलने लगता है एवं शरीर का ताप सामान्य होने लगता है। रोगी से स्वस्थ व्यक्ति में मलेरिया परजीवी मादा एनाफिलीज मच्छर के द्वारा ले जाया जाता है। रोगी व्यक्ति को काटने पर मच्छर उसके रुधिर से परजीवी को ग्रहण करता है। मलेरिया निम्न के प्रकार के होते है –
- प्लाज्मोडियम वाइवैक्स – यह बेनिगन टरटेन मलेरिया उत्पन्न करता है।
- प्लाज्मोडियम फैल्सीफेरम – यह अनुमस्तिष्क और मेलिंगनेट टरटेन मलेरिया उत्पन्न करता है।
- प्लाज्मोडियम ओवेल – यह माइल्ड टरटेन मलेरिया उत्पन्न करता है।
- प्लाज्मोडियम मलेरी – यह क्वार्टेन मलेरिया उत्पन्न करता है।
मलेरिया के लक्षण – झमाई, थकान, सिरदर्द एवं पेशीय दर्द, उच्च ताप, ठण्ड एवं कपकपी आदि।
अमीबिएसिस (amoebiasis)
अमीबिएसिस भारत में दुर्बल स्वास्थय सुविधाओं एवं प्रदूषित पेय जल के कारण फैल रहा है। यह रोग एण्टअमीबा हिस्टोलायटिका के द्वारा होता है। यह परजीवी मानव की बड़ी आंत एवं छोटी आंत के निचले भाग में रहता है। परजीवी सायटोलाइसिन नामक प्रोटियोलाइटिक एंजाइम स्त्रावित करता है जो आंत्र की म्यूकस झिल्ली को नष्ट कर देता है।
- अमीबएसिस के लक्षण – डायरिया, मल में श्लेष्म तथा रुधिर की उपस्थिति तथा उदरीय दर्द आदि।
- अमीबिएसिस के रोकथाम के उपाय – उचित सफाई रखकर इसका उपचार किया जाता है।
अफ्रीका का निंद्रा रोग
यह सबसे गंभीर प्रोटोजोअन रोग है जो एक फ्लेजिलेट प्रोटोजोअन के द्वारा होता है। ट्रिपेनोसोमा सबसे पहले रुधिर में इसके बाद लसिका में तथा अन्त में मानव के सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूड में पाया जाता है। इसका द्वितीयक रुधिर चूसने वाला एक कीट, ग्लोसिना (सी-सी मक्खी) होता है। अतः ट्रिपेनोसोमा का जीवन चक्र द्विपोषकीय होता है। यह परजीवी रुधिर प्लाज्मा में रहता है। इस रोग में ग्रंथियों में सूजन के साथ ज्वर होता है। प्रारम्भ में परजीवी अनुमस्तिष्क रज्जुकीय द्रव में प्रवेश करता है यह रोगी को निष्क्रिय तथा अचेति बनाता है। इसमें मक्खियों से बचना चाहिए तथा झाड़ियों को नष्ट करना चाहिए।
अफ्रीका का निंद्रा रोग के लक्षण – ग्रंथियों में सूजन और ज्वर।
लिशमैनिएसिस
इसे सामान्यता काला – अजार कहा जाता है। यह रोग लिशमैनिया डोनोवेनि के द्वारा उत्पन्न होता है। यह बालू मक्खी के काटने से फैलता है।
लिशमैनिएसिस के लक्षण – इसके लक्षण मलेरिया के समान ही होते है। जैसे – अनियमित चक्रण, ज्वर, तथा लारवोपीनिया, यकृत एवं प्लीहा का बड़ा होना।
आनुवंशिक रोग (Genetic Disease)
अप्रभावी स्वगुणसूत्रीय रोग (Recessive Autoimmune Disease)
- रंजकहीनता – यह रोग मिलैनिन वर्णक के न बनने के कारण होता है। इसकी पहचान त्वचा में सामान्य वर्णक की अनुपस्थति के कारण होती है।
- गेलैक्टोसिमिया – यह गेलैक्टोस उपापचय में त्रुटि के कारण होता है। मानसिकता में कमी इसका मुख्य लक्षण है।
- फिनाइलकीटोन्यूरिया – यह फिनाइल एलेनिन हाइड्रोक्सीलेस नामक एंजाइम के कारण होता है जो फिनाइल एलेनिन को टायरोसिन में बदल देता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की मानसिकता में कमी हो जाती है।
- एल्कैप्टोन्यूरिया – इस उपापचयिक रोग में हिमोजैन्टेसिक अम्ल का ऑक्सीकरण करता है। इन रोगियों का मूत्र बाह्य संपर्क में आते ही काला हो जाता है।
X-सहलग्न अप्रभावी (X-linked ineffective)
- हिमोफिलिया – इस रोग में रक्त स्कन्दन नहीं होता। यह कारक VIII (प्रतिहिमोफिलिक कारक) की कमी के कारण होता है।
- वर्णान्धता – यह रोग डाल्टोनिज्म भी कहलाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति हरे तथा लाल रंग में भेद नहीं कर पाते, इसलिए वर्णान्ध व्यक्ति रेलवे में नौकरी नहीं कर सकते है।
Y-सहलग्न अप्रभावी (Y-linked ineffective)
हाइपरट्राइकोसिस – कर्ण पल्ल्वो पर अतिरिक्त बालों का होना।
प्रतिरक्षा तंत्र क्या है (Immune System in hindi)
प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) किसी विशेष रोग के लिए शरीर सुरक्षा तंत्र का विकास करता है अर्थात प्रत्येक रोग के लिए पृथक सुरक्षा तंत्र विकसित होता है। ये सुरक्षा तंत्र ही प्रतिरक्षा क्रियायें करते है। जन्तुओं के इस गुण को प्रतिरक्षा कहते है तथा प्रतिरक्षा में भाग लेते है, और प्रतिरक्षा तंत्र का निर्माण करते है।
जीव विज्ञान की वह शाखा जो प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाओं से सम्बंधित है उसे प्रतिरक्षा विज्ञान या इम्यूनोलॉजी कहते है। वॉन बेहरिंग को प्रतिरक्षा विज्ञान का जनक माना जाता है। रोग जनक आक्रमण के विरुद्ध शरीर का प्रतिरक्षण प्राकृतिक या जन्मजात अविशिष्ट प्रतिरक्षा अर्थात माँ द्वारा प्रदान की गयी रक्षाविधि तथा उपार्जित या विशिष्ट प्रतिरक्षा शरीर में जीवनकाल के दौरान विकसित होने वाली होती है।
आसान शब्दों में कहे तो किसी भी तरह की बाहरी और आंतरिक बीमारी से लड़ने में सक्षम बनाना तथा शरीर को सुरक्षा प्रदान करना ही प्रतिरक्षा तंत्र कहलाता है। जिससे मनुष्य को रोगो (human Diseases) से लड़ने में ताकत मिलती है।
प्रतिरक्षा तंत्र सम्बन्धी कोशिकाएं (Immune System Cells)
लिम्फोसाइड – लिम्फोसाइड मुख्य एवं विशेष कोशिका होती है जो प्रतिरक्षा तंत्र का निर्माण करती है। ये कोशिकाएँ दो प्रकार की होती है।
- B – कोशिकाएँ – ये अस्थि मज्जा में विकसित होकर द्वितीयक लिम्फॉइड अंगो तक पहुँच जाते है।
- T – कोशिकाएँ – इनका निर्माण प्लूरिपोटेन्ट स्टेम कोशिकाओं द्वारा अस्थि मज्जा में पायी जाने वाली प्रोजेनिटर T – कोशिकाओं से होता है। ये ह्युमोरल तथा कोशिका माध्यम प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाओं में शामिल होते है। T – कोशिकाओं के निम्न प्रकार होते है।
- प्राणघातक T – कोशिकाएँ – ये कोशिकाएँ बड़ी ग्रेन्युलर लिम्फोसाइड है। ये कोशिकाएँ, विषाणु, जीवाणु, कवक तथा परजीवी से बचाती है।
- सहायक T – कोशिकाएँ – ये अन्य कोशिकाओं की साइटोटाक्सिसिटी में अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है और प्रतिजनों द्वारा उत्तेजित किये जाने पर साइटोकाइन्स उत्पन्न करती है जो अन्य कोशिकाओं की वृद्धि, विभाजन और प्रदर्शन बढ़ा देता है।
- अप्रभावक T – कोशिकाएँ – ये कोशिकाएँ एक प्रतिजन विशेष ढंग से उत्तेजित होती है। ये अपना प्रभाव नकारात्मक प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया बदलावकारी द्वारा डालती है। प्रतिरक्षा प्रणाली लिम्फॉइड अंगो तथा इनकी कोशिकाओं के उत्पादों द्वारा बनती है। प्राथमिक लिम्फेटिक अंग अस्थि मज्जा तथा थायमस है जबकि द्वितीयक लिम्फेटिक अंग प्लीहा और लिम्फ नोड हैं।
भ्रूण में इन कोशिकाओं का निर्माण यकृत के द्वारा तथा व्यस्को में अस्थि मज्जा के द्वारा होता है। इन कोशिकाओं का थाइमस में प्रवेश करने के बाद B तथा T-कोशिका में विभेदन हो जाता है। ये दोनों कोशिकाएँ एंटीजन के द्वारा प्रेरित एंटीबॉडीज का निर्माण करती है।
टीकाकरण तथा प्रतिरक्षण (Vaccination and Immunization)
टीकाकरण तथा प्रतिरक्षण का सिद्धांत प्रतिरक्षी तंत्र के ‘याददाश्त’ के ऊपर आधारित है। टीकाकरण में रोगाणुओं के या असक्रिय कमजोर रोगाणुओं के प्रतिजनित प्रोटीन को तैयार कर शरीर में प्रवेश कराया जाता है। ये प्रतिजनित प्रोटीन को तैयार कर शरीर में प्रवेश कराया जाता हैं। ये प्रतिजन प्राथमिक प्रतिरक्षी प्रतिवेदन तथा मैमोरी B- तथा T- कोशिकाओं को उत्पादित करते है। जब टिकायुक्त व्यक्ति उसी रोगाणु से आक्रमित होता है तो उपस्थित मैमोरी T-या -B कोशिकाएँ प्रतिजन को तेजी से पहचान लेती है तथा आक्रमणकारी को अत्यधिक लसीकाणुओ तथा प्रतिरक्षियों से घेर लेती है।
टीकाकरण की खोज एडवर्ड जैनर ने की थी। 1920 के अन्त में, डिफ्थीरिया, टिटेनस, परट्यूसिस तथा ट्यूबरकुलोसिस के टीके प्राप्त हो गए। टीकाकरण से कुछ मनुष्य रोगो (human Diseases) को नियंत्रित किया जा सकता है।
स्वास्थ्य संगठन (Health Organization)
1) विश्व स्वास्थय संगठन (WHO) – इसकी स्थापना 1948 में की गयी थी। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी है जिसका मुख्यालय जेनेवा में है। जो मनुष्य रोगो (human Diseases) की निगरानी रखता है।
2) रेडक्रास – इसकी स्थापना 1864 में की गयी थी। यह अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्टीय संस्थान है। इसका चिन्ह लाल क्रॉस + है, जिसका अस्पतालों, एम्बुलेंसों तथा डॉक्टरों द्वारा प्रयोग किया जाता है। जो मनुष्य रोगो (human Diseases) की निगरानी रखता है।
3) यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्ड्रन्स एमरजेंसी फंड – यह संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थान है। यह सारे संसार के बच्चो की देखभाल करता है। यह बच्चो में होने वाले रोगो (human Diseases) की निगरानी रखता है।
Human Diseases Quiz In Hindi
उम्मीद करता हूँ दोस्तों आपको आज की इस पोस्ट में मनुष्य में होने वाले सामान्य रोगो (Human Diseases), लक्षण और उपचार के बारे में जानकारी मिल गई होंगी। और पूरी पोस्ट पढ़ने के बाद Human Diseases Quiz में आपको अच्छे अंक मिले होंगे। ऐसे ही प्रतियोगी परीक्षा से जुड़े पोस्ट और क्विज के लिए https://gkhindiquiz.com/ ब्लॉग की अन्य पोस्ट भी पढ़े।
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