Hadappa Sabhyata क्या है ? हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं।
इतिहास के पन्नो में अक्सर हड़प्पा सभ्यता (Hadappa Sabhyata) का जिक्र होता है। यहाँ से भारतीय इतिहास की शुरुआत होती है। हड़प्पा में वैदिक आर्यों का निवास स्थान सिंधु नदी घाटी में था। सिंधु घाटी सभ्यता, आर्य-पूर्व सभ्यता को ही हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है, जो पश्चिमी (आधुनिक पकिस्तान) के हड़प्पा तथा सिंधु के मोहनजोदड़ो के उत्खनन से प्रकाश में आयी थी। एक भारतीय होने के नाते और कई प्रतियोगी परीक्षाओ की दृष्टि से भी हमें हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानना चाहिए की हड़प्पा संस्कृति क्या है (Hadappa Sabhyata Hindi) हड़प्पा की विशेषताएं (hadappa sanskriti ki visheshtayen) हड़प्पा सभ्यता के काल, निर्माण , भौगोलिक स्थल आदि।
इस पोस्ट के अंत में आपको hadappa sabhyata se jude question answer भी मिलेंगे जो हमारी 1000 History Quiz से जुड़े है जुन्हे आप जरूर हल करे और आपके कितने नंबर आये है हमें कमेंट्स कर के जरूर बताये।
हड़प्पा सभ्यता (Hadappa Sabhyata) नाम क्यों रखा गया।
यह आर्यो निवास और कॉन्स्युगीन थी तथा इसका आकार त्रिभुजाकार था। यह सभ्यता मिश्र मेसोपोटामिया एवं किट सभ्यता की समकालीन थी। इसका नाम हड़प्पा संस्कृति पड़ा, क्योकि इसकी जानकरी सबसे पहले 1921 ई. में पाकिस्तान में अवस्थित हड़प्पा नामक आधुनिक स्थल से प्राप्त हुई थी। भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिर्देशक जॉन मार्शल के निर्देशन में रायबहादुर दयाराम साहनी ने 1921 ई. में हड़प्पा की खुदाई करवाई एवं राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में मोहनजोदड़ो की खुदाई करवाई थी। सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 ई. में हड़प्पा टीले के बारे में जानकारी दी थी। सर जॉन मार्शल ने सर्वप्रथम इसे “सिंधु सभ्यता” का नाम दिया था।
सिंधु सभ्यता के निर्माता – हड़प्पा संस्कृति (सिंधु घाटी सभ्यता) के निर्माता सम्भवतः सुमेरियन के लोग थे। इतिहासकार डॉ. गुहा के अनुसार, इस सभ्यता के निर्माता अग्नेय, अल्पाइन व मंगोल जाती के लोग थे, इतिहास में अलग लग लोगो की अलग अलग धारणा होने के कारण इस बारे में कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता है।
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हड़प्पा संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता के काल
- हड़प्पा संस्कृति (Hadappa Sabhyata) के अंतर्गत वर्तमान पंजाब, सिंधु और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं बल्कि गुजरात, राजरस्थान, हरियाणा और पञ्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमांत भाग भी सम्मिलित थे।
- इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से लेकर पूर्व में मेरठ तक था।
- इतिहासकार व्हीलर के अनुसार – 2800 ई.पू. -1500 ई.पू. था।
- डॉ. वी. ए. स्मिथ के अनुसार – 2500 ई.पू. – 1500 ई. पू. था।
- जॉन मार्शल के अनुसार – 4000 ई. पू. – 2500 ई. पू. था।
- डॉ.आर.के. मुखर्जी के अनुसार – 3250 ई.पू. – 2750 ई. पू. था।
- कार्बन डेटिंग (रेडिओ कार्बन ) (C) के आधार पर – 2350 ई.पू. – 1750 ई. पू. मानी गई है।
- NCERT के अनुसार – 2500 ई.पू. – 1800ई. पू. है।
हड़प्पा सभ्यता के भौगोलिक स्थल (Geographical sites of Harappan Civilization)
हड़प्पा (Hadappa) – हड़प्पा संस्कृति की हड़प्पा पहली बस्ती थी, जहाँ खुदाई की गई। यह आधुनिक पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी (साहीवाल) जिले में, रावी नदी के बांये तट पर स्थित है। इसके बारे में 1921 ई.में दयाराम साहनी ने खोज की थी। इस नगर के अवशेष लगभग 3 मील के दायरे में फैले हुए थे। हड़प्पा भारत में खोजा गया सबसे पुराना शहर था। यह हड़प्पा का सभ्यता का एकमात्र स्थल है जँहा से ताबूत में शवों को रखकर दफ़नाने के प्रमाण मिले है।
यँहा से सर्वाधिक अभिलेख रबड़, मुहरे प्राप्त हुई है। इन मुहरों में अधिकांश एक शृंगी पशु अंकित है। हड़प्पा में अन्नागार ओरवली युक्त चबूतरे, कांस्य गांडी, पारदर्शी वस्त्र पहने हुए एक मूर्ति, गरुड़ चित्रित मुद्रा, मछुआरे का चित्र, शंख का बैल, कांस्य दर्पण आदि के साक्ष्य मिले है।
लोथल – गुजरात प्रान्त के अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका में भोगवा नदी के समीप स्थित लोथल, हड़प्पाकालीन सभ्यता का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। यह पूरा नगर ही दीवारों से घिरा था। यह के निवासी चावल भी उगाते थे। लोथल व कालीबंगा के कब्रिस्तान से पुरुषो व महिलाओ को एक साथ दफनाऐ जाने का प्रमाण प्राप्त होता है।
लोथल से हड़प्पाकालीन बंदरगाह (Dockyard) के साक्ष्य मिलते है। यहा से फारस की मुद्रा के साक्ष्य मिलते है। लोथल में पैमाने भी प्राप्त हुए, जिससे ज्ञात होता है की इस सभ्यता के लोग माप-तौल से परिचित थे। लोथल में गोदीबाड़ा, वृत्ताकार तथा चौकोर अग्निवेदिका, हाथी दाँत, स्वर्ण-आभूषण, दिशा मापक यंत्र, फारस की मुहर, घोड़े की मृण्मूर्ति, तीन युग्मित समाधियाँ, चालाक लोमड़ी का चिन्ह आदि के साक्ष्य मिले है।
मोहनजोदड़ो – मोहनजोदड़ो, वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में सिंधु नदी के किनारे स्थित प्रमुख नगर था। यह सैंधव सभ्यता का सबसे बड़ा और प्रमुख नगर था। इस स्थल के विषय में जानकारी सर्वप्रथम 1922 ई. में राखालदास बनर्जी को हुई थी। मोहनजोदड़ो का अर्थ है – मृतकों का टीला। इसे नखलिस्तान या सिंध का बाग भी कहते है। मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानगार है, यह 11.88 मी. लम्बा ,7.01 मी. ,चौड़ा और 2.43 मी. गहरा है। विशाल स्नानागार, पुरोहितो का आवास, सभा भवन, अधिकांश भवनों में कुएँ व स्नानागार मकानों का बैरक, कांस्य से निर्मित नग्न महिला मूर्ति, दाढ़ी वाले पुजारी की मूर्ति, चमकते हुए बंदर का चित्र, एक श्रंगी पशुओ वाली मुद्राएँ प्राप्त हुई।
मांडा – इसका उत्खनन 1982 ई.पू. में जगपति जोशी व मधुबाला ने करवाया था। मांडा में तीन सांस्कृतिक स्तर-प्राक सैंधव, विकसित सैंधव एवं उत्तर सैंधव है। मांडा का उत्खनन में चर्ट, ब्लेड, हड्डी से निर्मित बाणाग्र, मुहरों के साक्ष्य मिले है। मांडा अखनूर जिले में चिनाब नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। यह विकसित हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक उत्तरी स्थल है।
दैमाबाद – यह स्थल महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में प्रवरा नदी के बायें किनारे पर स्थित है। दैमाबाद सैधव सभ्यता का दक्षिणी स्थल है।
सुत्कन्गेडोर – इसकी खोज 1927 ई. में सर मार्क ऑरेल स्टाइन ने की थी। हड़प्पा संस्कृति का सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है तथा इसका क्षेत्रफल 1,299,600 वर्ग किमी है। इसमें तीन संस्कृतियों के साक्ष्य, प्रकृतिक चट्टान पर अवस्थित, मानव अस्थि-राख से भरा बर्तन, बेबीलोन से व्यापर का साक्ष्य, बंदरगाह आदि। केवल सात सैंधव स्थलों को नगर की संज्ञा दी गई है, जो निम्न है – हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदडो, लोथल, कालीबंगा, बनावली और धौलावीरा।
चन्हुदडो – यह वीरान क़स्बा पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित था। इस स्थल से पाये गये अवशेषों में यह स्पष्ट होता है की यह सीलो या मुद्राओं के उत्पादन का मुख्य केंद्र था। मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर (81मील) दक्षिण में स्थित है। यह 4000 – 1700 से ईशा पूर्व में बसा हुआ माना जाता है। इस स्थान को इंद्रगोपा मनको के निर्माण स्थल के रूप में माना जाता है। मनके बनाने का कारखाना, बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते का साक्ष्य, लिपस्टिक, कांस्य गाड़ी, वक्राकार ईंट, कंघा, तीन घड़ियालों तथा दो मछलियों के अंकन वाली मुद्रा, काजल, पाउडर आदि के साक्ष्य मिले है।
धौलावीरा – हड़प्पाई नगरों की श्रखला में धौलावीरा एक नवीनतम खोज है। यह नगर गुजरात के रण के बीच कच्छ जिले में खडीर द्वीप में स्थित है। इसकी जानकारी सर्वपथम सनं 1990-91 में आर. एस. बिस्ट को हुई थी। यह नगर तीन भागों में बाँटा था, जबकि अन्य सैंधवकालीन नगर दो भागो में बाँटे थे। धौलावीरा से उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली एवं घरो के दरवाजों पर नेमप्लेट के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
आलमगीरपुर – यह स्थल मेरठ जिले में हिंडन नदी (यमुना की सहयक) के तट पर स्थित है। इस स्थल की खोज 1958 ई. में भारत सेवक समाज संस्था द्वारा की गई थी। इसका उत्खनन कार्य यज्ञदत्त शर्मा द्वारा किया गया था। यह मृदभांडो पर रंगीन चित्रकारी है तथा यह सिंधु सभ्यता का सर्वाधिक पूर्वी स्थल है।
कालीबंग – यह स्थान राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित है। यहाँ पर हड़प्पा पूर्व-संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है। राजस्थान में स्थित कालीबंगा से लकड़ी की नाली, हल से जोते गए खेत, अग्नि हवनकुण्ड के साक्ष्य, अलंकृत फर्श व ईंट के साक्ष्य, चूड़ियों के साक्ष्य, ऊंट की हड्डियों तथा बेलनाकार मुद्रा के साक्ष्य प्राप्त हुए है। काली बंगा का अर्थ-काली चूड़ियाँ होता है।
रोपड़ – यह पंजाब के रूपनगर में सतलज नदी के पास स्थित है। इसकी खोज यज्ञदत्त शर्मा ने 1955 ई. में की थी। यह ताँबे की कुल्हाड़ी, मानव के साथ कुत्ते को दफ़नाने का साक्ष्य, सेलखड़ी की मुहर आदि के साक्ष्य मिले है।
बनावली – यह हरियाणा के हिसार जिले में अवस्थित था। इसका पता आर.एस.बिष्ट ने 1973 -74 में किया गया। इस स्थल की सभ्यता का द्वितीय युग हड़प्पाकालीन था। इसमें मिट्टी का हल (खिलौने), सड़कों पर बैलगाड़ी के पहिए का साक्ष्य, जौ के दाने, धावन पात्र, मुहरों कसौटी आदि के साक्ष्य मिले है। यह सरस्वती नदी के किनारे स्थित है।
रंगपुर – यह गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में भादर/मादर में स्थित है, जिसकी खोज एस.आर.राव ने 1954 ई.में की थी। यह ज्वार-बाजरा, तीन संस्कृतियों के अवशेष, नालियॉं, कच्ची ईंटो के दुर्ग, धान के भूसे के ढेर आदि के साक्ष्य मिले है।
सुरकोटदा – यह गुजरात के कच्छ में सरस्वती नदी के किनारे है। इसकी खोज जगपति जोशी ने 1964 ई. में की थी। यह कलश शवाधान, घोड़े की अस्थियो (हड्डियों) के साक्ष्य, तराजू का पलड़ा, चिनाई वाले भवनों के भी साक्ष्य मिले है।
हड़प्पा संस्कृति/सिंधु घाटी की विशेषताएं (hadappa sanskriti ki visheshtayen)
नगर योजना और संरचना – सिंधु घाटी सभ्यता अपनी नगर निर्माण योजना के लिए विश्व प्रसिद्ध है। अतः इसे नगरीय सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। नगरों में बने भवनों के बारे में विशिष्ट बात यह है की, ये जाल की तरह व्यवस्थित थे। सड़कें एक-दूसरे को समकोण बनाते हुए कटती थी। निर्माण, दुर्गीकृत नगर और निचली बस्तियों में आबादी, बटवारा, एक समान ईंट, लेखन-कला का ज्ञान, मानक बाँट-माप, काँसे के औजारों के प्रयोग आदि। अपवाह तंत्र का निर्माण भी सर्वप्रथम सिंधु सभ्यता के लोगों ने ही किया था।
भवन निर्माण – हड़प्पा संस्कृति घरो का निर्माण एक सीध में सड़कों के किनारे व्यवस्थित रूप में किया जाता था। दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पीछे की ओर खुलते थे। सिंधु सभ्यता से प्राप्त ईंटे 4:2:1 के अनुपात में होती थी। प्रत्येक भवन में रसोईघर, स्नानागार, बीच में आँगन और शौचालय की व्यवस्था थी। जॉन मॉर्शल ने विशाल स्नानागार को विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण बताया था। यह जलपूजा का एकमात्र साक्ष्य है।
अन्नागार– उत्खनन में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा में विशाल अन्नागार का साक्ष्य मिला है, जो 45.71 मीटर लम्बा और 15.23 मीटर चौड़ा है, यह जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। ये अन्नागार इस तथ्य को दर्शाते है कि सैंधववासी ज्यादा मात्रा में अन्न अधिशेष सुरक्षित कर लेते थे। यह अन्नागार मोहनजोदड़ो में सबसे बड़ा भवन है। हड़प्पा के दुर्ग में छह अन्नागार मिले है, जो ईंट के बने चबूतरों पर दो पंक्तियों में खड़े है। प्रत्येक अन्नागार 15.23 मीटर लम्बा और 6.09 मीटर चौड़ा है।
कृषि/खेती के साधन – सिंधु वासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि ही था तथा यही उनकी अर्थव्यवस्था की ताकत थी। सैंधवकालीन लोग खेती में लकड़ी के हलों तथा कटाई के लिए पत्थर की बने हँसियो का प्रयोग करते थे। सिंधु सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, सरसों, मटर, अनाज आदि की खेती करते थे। खेतों की सिंचाई तालाब, नदी, कुएं तथा वर्षा के पानी से की जाती थी। सर्वप्रथम कपास की खेती की शुरुआत सिंधु सभ्यता से हुई। इसे ग्रीक या यूनान के लोग हिंडन कहा करते थे। चावल के उत्पादन के साक्ष्य लोथल व रंगपुर से मिले है।
पशुपालन – हड़प्पाई लोग बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पालते थे। इन्हे कूबड़ वाला साँड़ विशेष प्रिय था। इसके अतिरिक्त ये गधे और ऊँट भी रखते थे। घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ो की ऊपरी सतह से तथा लोथल में मिली एक संदिग्ध मृण्मूर्ति (टेराकोटा) से मिला है।
व्यापार पद्धति – सैंधववासियो के व्यापारिक संबंध विदेशो से थे। उनका व्यापार थल व जल दोनों मार्ग से होता था। वस्त्र, आभूषण, पात्र, अस्त्र-शस्त्र आदि का व्यापार काफी मात्रा में होता था। इनका व्यापार वस्तु-विनिमय पर आधारित था।
धार्मिक दशा – सैंधवकालीन लोग केवल भौतिकवादी ही नहीं थे, बल्कि उनकी रूचि धार्मिक क्षेत्र में भी थी अर्थात ये धर्मवादी भी थे। वे लोग मातृदेवी के उपासक थे। इसके पीछे उनकी कल्पना सृष्टि-निर्मात्री नारीतत्व की थी। ये पशुपति नाथ की पूजा करते थे। प्राप्त मुद्रा में पशुपति नाथ के सिर पर दो सींग बने हुए है। वृक्षों में पीपल, महुआ, तुलसी तथा पशुओं में कूबड़ वाला बैल तथा साँप की पूजा की जाती है। सिंधु सभ्यता से स्वास्तिक, चक्र और क्रॉस चिन्ह के साक्ष्य प्राप्त हुए है। स्वास्तिक चिन्ह सूर्य पूजा का घोतक है।
माप-तौल के तरीके – माप के लिए सीपी के टुकड़ो तथा तौल के लिए बाँटो का प्रयोग किया जाता था। अधिकांश बाँट घनाकार होते थे। सिंधु सभ्यता के बाँट माप 16 के अनुपात में थे जैसे- 16, 64, 160, 320, 640 आदि। हड़प्पा से ताँबे व कांसे का पैमाना तथा मोहनजोदड़ो से सीप का तथा लोथल से हाथी दाँत से बना पैमाना मिला है। सुरकोटदा से तराजू का साक्ष्य मिला है।
हड़प्पाई लिपि – सिंधुवासी लिपि से परिचित थे। उनकी मौलिक लिपि थी। इसके अब तक 400 चिन्हों की पहचान की जा चुकी है। यह चित्रात्मक आधार पर सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, गरिकाओं आदि पर बनाई गई थी। इस लिपि को पढ़ने की शुरुआत 1925 ई. में वैडेल ने की थी। वैज्ञानिक पद्धति से इस लिपि को पढ़ने का प्रयास 1934 में सर्वप्रथम हंटर महोदय ने किया था। यह लिपि पहले दांये से बांये और फिर बांये से दांये लिखी जाती है। इसे “हलावर्त्त शैली” या “गोमुत्रिका शैली” या “बस्त्रोफेदन “(Boustrophedon) कहा गया है।
अंतिम संस्कार – हड्डपा (hadappa) सैंधवकालीन लोग शव को जमीन में दफनाते थे। कुछ लोग शव को जलाने के पश्चात् उसकी राख को किसी पात्र में भरकर जमीन में गाड़ देते थे। रोपड़ की कब्र से मालिक के साथ कुत्ते के दफनाए जाने के प्रमाण मिले है। लोथल की एक कब्र से मृतक के साथ बकरे को दफनाए जाने के प्रमाण मिले है।
हड़प्पा सभ्यता से जुड़े पश्न और उत्तर Hadappa Sabhyata se jude question answer in hindi
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